सरहदे
मैं किसी सरहद को नहीं मानता,


मैं किसी सरहद को नहीं मानता,



मैं तो सिर्फ मुसाफिर हु इस दुनिआ में यारो कुछ वक्त का


यह बिखरे हुए शीशे इल्म के,



खुरचन खाके भी हौसला नहीं टुटा,



इल्मे गैब हर किसी को नहीं मिलता,


ज़िन्दगी में हर किसी के उलझन है बस दर्द झलकता नहीं चेहरे पे |



नब्ज़े अश्क की पनाहगाह हु मैं ै ज़िन्दगी तेरी करज़दार हु मैं |



“वह शाखें बगिया की वह झरोखे अपने कूचें के पारर गए है सूने |
