
इल्मे गैब हर किसी को नहीं मिलता,
बे गुनाह की बक्शीश ज़रूरी नहीं होती;
मज़हब सब का होता है, मगर दुनिआ किसी की नहीं होती |
इल्मे गैब हर किसी को नहीं मिलता,
बे गुनाह की बक्शीश ज़रूरी नहीं होती;
मज़हब सब का होता है, मगर दुनिआ किसी की नहीं होती |
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